हमारे दिन


ऐसा ही होता है … ऐसा ही होता रहा है … यादों की बातें कभी खत्म नहीं होतीं … यादों में ढला होता है वो सब जो हुआ होता है … वो भी होता है जो होते होते रह गया … और वो भी जो होना चाहिए था पर नहीं हुआ … इन सब का एक ऐसा ब्लेंड जो एक पूर्णता सी इख्त्यार कर ले … जहां घटनाएं ठहरती हैं वहीं  पूरी अधूरी उम्मीदें , कल्पनाएँ आ इकट्ठी होती हैं … एक दूसरे का हाथ पकड़ मुस्कुराती हैं और आगे बढ़ लेती हैं …हमारा आज और आने वाला कल लीनिअर भले हो , अतीत तो नन लीनिअर ही होता है … वहाँ रास्ते सड़कों जैसे नहीं होते … जैसे हम रैंडम मोड में कोई रिकार्डिड कहानी सुन रहे हों … शायद यह भी एक कारण हो यादों के उबाऊ न होने का …
आँखें थक गयीं थीं और हम बात करते करते आँखें बंद कर चुप हो गए थे … उन्होंने टेबल पर रखा हमारा हाथ सीधा किया और हथेली खोल अपना छोटा सा हाथ हमारी हथेली पर रख दिया … हमने देखा … वे मुस्कुरा रही थीं … हमने कहा ‘आपका छोटा सा हाथ कितना सुन्दर है … कुछ पहनिए … एक छोटी सी रिंग …’ …. ‘आप ला दीजिए हम ज़रूर पहनेंगे’ … ‘अरे हमारे पास पैसे कहाँ हैं इतने’ … ‘ताम्बे का एक छल्ला ला दीजिए … हम वही पहनेंगे … हमेशा … और कुछ भी नहीं पहनेंगे …’ हम अवाक हो गए … ‘एक ताम्बे का छल्ला … क्या देंगे आप हमें …’ माँ हँसने लगीं … इंदु मुस्कुराती रही … ‘हमें पता है … समय आने पर आप आसमान के तारे तोड़ के ला देंगे पर ताम्बे का एक छल्ला नहीं देंगे ….’ उनका गला भर्रा गया … माँ ने उनके सर पे हाथ रखा … इंदु ने उन्हें अपने से चिपका लिया … ‘माँ …’ माँ ने उन्हें देखा …’ तुम पागल हो … ‘
उन्होंने लिखा
                        ‘चांदी सोने के नहीं मिटटी के सपने हैं मेरे
                        ऐ खुदा मुझको मेरी मिटटी की दौलत दे दे
                        सोना चांदी मेरा दे दे जो मांगे इसको
                        मुझको बस साथ में चलने की इजाज़त दे दे
                        जो मिले साथ तो मिल जाए नेह्म्तें सारी …’
उनके शब्द दरवाज़े खटखटाते रहे … सदाएं देते रहे … हाथ पकड़ रोकते रहे … वे मुखर रहीं … जाने क्या था जो उनकी हर बात को अनसुना करता रहा …

2 Responses to “हमारे दिन”

  1. मुखर तो वो आज भी है ….नहीं है …तो भी..! नहीं होकर भी ..कोई कितना ज्यादा होता जाता है …ये …आज समझ आ रहा है ..

  2. उनके हाथों के लिखे खूबसूरत अल्फाजों को आपने आज भी सहेज कर रखा है ..? याद आती है एक नज़्म …जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखाजिन को इक उम्र कलेजे से लगाये रखादीन जिनको, जिनहें ईमान बनाये रखातूने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखेसाल-हा-साल मेरे नाम बराबर लिखेकभी दिन में तो कभी रात में उठकर लिखेतेरी खुशबू में बसे खत, मैं जलाता कैसेप्यार में डूबे हुये खत, मैं जलाता कैसेतेरे हाथों के लिखे खत, मैं जलाता कैसेतेरे खत आज मैं, गँगा में बहा आया हूँआग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

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